12-दिन का इजरायल-ईरान युद्ध: क्या वाकई खत्म हुआ संघर्ष?

📅 प्रकाशन तिथि: 25 जून 2025 | 🕐 समय: 8:30 AM
लेखक: The Rational Herald

12-दिन के इजरायल-ईरान युद्ध के बाद संघर्षविराम लागू हो गया है। जानिए कौन जीता, कौन हारा और क्या यह शांति का रास्ता बनेगा या एक अस्थायी राहत?

डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से हुआ संघर्षविराम, लेकिन क्या इससे शांति आएगी? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें देखना होगा कि दोनों पक्षों ने क्या खोया और क्या पाया।

युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?

13 जून को इजरायल ने ईरान के नतांज़ और इस्फ़हान स्थित परमाणु ठिकानों पर हमला किया। अमेरिका ने इस कार्रवाई में सीधे शामिल होकर फोर्डो जैसे संवेदनशील अंडरग्राउंड साइट्स को नष्ट कर दिया।

जवाब में, 17 जून को ईरान ने कतर के अल उदैद अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइलें दागीं। इस हमले के विस्तृत विवरण के लिए पढ़ें: ईरान का अमेरिकी एयरबेस पर हमला: अल उदैद बना निशाना

कुछ ही घंटों में डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘Truth Social‘ पर एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा कर दी जिसे दोनों पक्षों ने स्वीकार किया।

इजरायल को क्या मिला?

  • नए स्तर की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन: पहली बार इजरायल ने ईरान के संवेदनशील परमाणु संयंत्रों को निशाना बनाया।
  • अमेरिका की प्रत्यक्ष सैन्य भागीदारी: इससे पहले के संघर्षों में अमेरिका ने सिर्फ सामग्री सहायता दी थी। अब पहली बार अमेरिका ने सीधे ऑपरेशन में भाग लिया।

राजनीतिक समर्थन: बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया कि विश्व नेता इजरायल के “निर्णय और सैन्य शक्ति” से प्रभावित हैं।

ईरान की स्थिति क्या रही?

नुकसान सीमित: ईरान का दावा है कि उसने पहले से रिकवरी की योजना बना रखी थी और उत्पादन में कोई बाधा नहीं आई।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति: ईरान यूरोपीय यूनियन के साथ संपर्क में है। 20 जून को विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने फ्रांस, जर्मनी, UK और EU के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

आंतरिक समर्थन मजबूत: संसद की सुरक्षा समिति ने IAEA सहयोग को खत्म करने का बिल पास किया।

क्या संघर्ष फिर भड़केगा?

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ संघर्षविराम है, शांति समझौता नहीं।

ईरान के पास अब भी उच्च स्तर का समृद्ध यूरेनियम है, जिसकी निगरानी संभव नहीं हो पाई है।

संयुक्त राष्ट्र और IAEA की पहुंच अभी सीमित है। IAEA प्रमुख राफेल ग्रोसी ने कहा कि अभी यह तय नहीं है कि नुकसान कितना गहरा है।

ट्रंप का सख्त रुख: ट्रंप ने फिर से दोहराया है कि वह ईरान को परमाणु कार्यक्रम फिर से शुरू नहीं करने देंगे।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका

  • EU की मध्यस्थता जारी: यूरोप अब कूटनीतिक पुल का कार्य कर सकता है।
  • रूस पर अविश्वास: ईरान खुद मानता है कि रूस अब भरोसेमंद साथी नहीं रहा।

संभावित नया समझौता: ओबामा युग के JCPOA की तरह कोई नया समझौता संभव हो सकता है, लेकिन इजरायल इसको रोकने का प्रयास करेगा।

भविष्य की चुनौती: शांति या एक और युद्ध?

भले ही संघर्षविराम घोषित हो चुका है, लेकिन दोनों देशों के बीच अविश्वास की गहरी खाई बनी हुई है। ईरान की संसद में जिस प्रकार से IAEA सहयोग को समाप्त करने का प्रस्ताव आया, वह आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण को और मुश्किल बना सकता है।

इजरायल की तरफ से भी यह साफ है कि वह ईरान को परमाणु शक्ति बनने से रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इस पूरे घटनाक्रम में अमेरिका की भूमिका एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरी है, जिसने न केवल संघर्षविराम में मध्यस्थता की बल्कि सीधे सैन्य कार्रवाई में भी भाग लिया।

यूरोप के पास अभी भी एक अवसर है—एक ऐसा समझौता तैयार करना जो सुरक्षा और पारदर्शिता दोनों सुनिश्चित करे। पर सवाल यह है कि क्या ईरान, जिसे पहले भी धोखा मिला है, अब किसी नए समझौते पर भरोसा करेगा?

दुनिया अब एक बहुत ही संवेदनशील मोड़ पर खड़ी है। अगर संतुलन नहीं साधा गया, तो अगला युद्ध और भी व्यापक और विनाशकारी हो सकता है।

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