बिहार मतदाता सूची विशेष संशोधन अभियान: नया नामांकन नहीं, पर भ्रम बरकरार

📅 प्रकाशन तिथि: 30 जून 2025 | 🕐 समय: 11:30 AM
लेखक: The Rational Herald

बिहार मतदाता सूची अभियान की शुरुआत 30 जून से हुई है। जानिए दस्तावेज़ रहित फार्म, पारिवारिक सर्टिफिकेट, विरोध और NRC जैसे आरोपों की पूरी सच्चाई।

बिहार मतदाता सूची अभियान: क्या यह NRC का नया रूप है?

आज से बिहार के सभी 38 जिलों में विशेष सघन मतदाता सूची संशोधन अभियान (Special Intensive Revision) की शुरुआत हो रही है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह “de-novo” अभ्यास नहीं है, यानी नई सूची नहीं बनाई जा रही है बल्कि पुराने डाटाबेस को ही अपडेट किया जा रहा है।

राज्य के 77.2 मिलियन मतदाताओं की जानकारी जुटाने के लिए 78,000 से अधिक बूथ स्तर के अधिकारी (BLO) अगले एक महीने तक घर-घर जाकर सर्वे करेंगे।

अब बिना दस्तावेज़ भी नामांकन संभव

चुनाव आयोग ने कुछ नियमों में राहत दी है। नामांकन फार्म अब बिना दस्तावेज़ के भी स्वीकारे जाएंगे, यदि उनमें सभी अनिवार्य विवरण टिक किए गए हों।

“बिना दस्तावेज़ों के भी अगर फार्म में जरूरी जानकारी है, तो नाम ड्राफ्ट में जोड़ा जाएगा। हटाया नहीं जाएगा,” – चुनाव आयोग अधिकारी

पहले के नियमों के मुताबिक, 25 जुलाई तक फार्म न भरने पर नाम हटाए जा सकते थे, लेकिन अब यह स्पष्ट किया गया है कि कोई नाम फिलहाल नहीं हटाया जाएगा। मोबाइल नंबर और जन्म तिथि भी अब अनिवार्य नहीं है।

2003 मतदाता सूची का उपयोग और डिजिटल प्रमाण

2003 की मतदाता सूची में शामिल 5 करोड़ लोगों को SMS अलर्ट भेजे जा रहे हैं, जिससे वे वेबसाइट से डिजिटल प्रमाण डाउनलोड कर सकें और फार्म के साथ सबमिट कर सकें।

गांवों के नागरिक जो जन्म प्रमाणपत्र नहीं रखते, वे खतियान, किरायेदार रजिस्टर और संपत्ति दस्तावेज का उपयोग कर सकते हैं।

“खतियान से यह साबित होता है कि व्यक्ति राज्य का स्थायी निवासी है,” – मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा

पारिवारिक वृक्ष और नए प्रमाणपत्र

जिनके पास जन्मस्थान का कोई प्रमाण नहीं है, उनके लिए “फैमिली ट्री सर्टिफिकेट” या “पारिवारिक रजिस्टर” को वैकल्पिक प्रमाण माना जाएगा। लेकिन इसे लेकर AIMIM जैसे दलों ने विरोध किया है, क्योंकि यह दस्तावेज़ ग्राम पंचायत से मिलने में देरी और लालफीताशाही को बढ़ावा दे सकते हैं।

कमजोर वर्गों की सहायता के लिए विशेष तैनाती

चुनाव आयोग ने 1 लाख से अधिक स्वयंसेवकों को बुजुर्गों, विकलांगों और गरीबों की मदद के लिए तैनात किया है। साथ ही 154,000 से अधिक बूथ स्तर एजेंट भी मतदाता शिक्षा के लिए सक्रिय हैं।

इस अभियान के तहत 160 मिलियन पूर्व-भरे हुए फार्म छापे गए हैं, जिनमें यूनिक QR कोड है, ताकि गलत जानकारी रोकी जा सके।

विरोध और NRC की आशंका

विपक्ष ने इस अभियान को “छुपे रूप में NRC” कहकर निशाना साधा है। ममता बनर्जी ने इसे NRC से भी “ज्यादा खतरनाक” बताया है।

“यह लाखों लोगों को मतदान से वंचित करने की साजिश है,” – चितरंजन गगन, राजद नेता

कानूनी विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि यह प्रक्रिया नागरिकता तय करने का एकपक्षीय तरीका बन सकती है। CHRI के निदेशक वेंकटेश नायक ने कहा, “सरकार खुद इस विवाद में पक्ष है, तो उसे अंतिम निर्णयकर्ता नहीं होना चाहिए।”

ज़मीनी स्तर पर चुनौतियां

BLO अधिकारी सवाल उठा रहे हैं कि वे 25 दिन में कैसे 1200 से अधिक मतदाताओं का सत्यापन करेंगे, खासकर बरसात के मौसम में।

“SIR प्रक्रिया छह महीने पहले होनी चाहिए थी। अब यह हड़बड़ी वाला काम लग रहा है,” – ओमप्रकाश यादव, पूर्व IAS अधिकारी

प्रवासियों, भूमिहीनों और अशिक्षित वर्गों के लिए यह प्रक्रिया और भी कठिन साबित हो सकती है, क्योंकि उनके पास आवश्यक दस्तावेज़ नहीं होते।

संवैधानिक दायित्व बनाम जमीनी हकीकत

चुनाव आयोग ने इसे अनुच्छेद 326 के तहत उचित ठहराया है, जो केवल भारतीय नागरिकों को मतदान का अधिकार देता है।

“हम नया वोटर लिस्ट नहीं बना रहे, केवल सफाई कर रहे हैं,” – आयोग का बयान

2003 की सूची को ‘नागरिकता का प्रमाण**’ मानते हुए** कार्य किया जा रहा है, जब तक कि इसके विरुद्ध कोई ठोस प्रमाण न मिले।

आवश्यक सुधार या राजनीतिक रणनीति?

बिहार मतदाता सूची अभियान का उद्देश्य पारदर्शिता और सत्यापन है, लेकिन इसके कार्यान्वयन और समयसीमा को लेकर भारी असमंजस है। यदि सही दिशा में न चला, तो यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को प्रभावित कर सकता है।

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