📅 प्रकाशन तिथि: 19 जुलाई 2025 | 🕐 समय: 10:00 AM
✍ लेखक: The Ratioal Herald
महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा विवाद से जुड़ी ताज़ा खबरें, 14 विवादित गांवों की स्थिति, स्थानीय जनता की राय और दोनों राज्यों के दावों की पूरी जानकारी यहाँ पाएं। जानिए इस मामले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और वर्तमान घटनाक्रम विस्तार से।
भारतीय राज्यों की सीमाओं पर होने वाले विवादों में से एक बार फिर सुर्खियों में है — महाराष्ट्र और तेलंगाना (पूर्व में संयुक्त आंध्रप्रदेश) की सीमा पर बसे 14 गांव। इन गांवों की नागरिकता, सुविधाएं और प्रशासनिक अधिकारों को लेकर दोनों राज्यों में विवाद छिड़ा है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने इन 14 गांवों को अपने हिस्से में शामिल करने का निर्णय लिया, जिससे स्थानीय स्तर पर बड़ी हलचल मच गई।
महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा विवाद प्रमुख 14 विवादित गांव – कौन हैं ये?
ये गांव मुख्य रूप से चंद्रपुर (महाराष्ट्र) और आदिलाबाद (तेलंगाना) जिलों की सीमाओं पर स्थित हैं। चौदह गांवों में ये नाम शामिल हैं:
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अंतापुर
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पद्मावती
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इंदिरानगर
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पर्सगुडा
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भोलापठार
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लेंदीगुडा
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येसापूर (नरायणगुडा)
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महाराजगुडा
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कोठा (बु. और खु.)
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परमडोली
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मुकादमगुडा
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लेंगीजाळा
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शंकरलोधी
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पलसागुडा
इन गांवों की विशेष बात यह है कि यहां के लोगों के पास दो-दो चुनाव पहचान पत्र (महाराष्ट्र और तेलंगाना दोनों के), दो ग्राम पंचायत, दो प्राथमिक स्कूल – एक मराठी, एक तेलुगू, और दोनों राज्यों की सरकारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
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1956 में राज्यों के पुनर्गठन समय से इस इलाके का विवाद जारी है, जब कुछ मराठीभाषी गांव कतिपय कारणों से आंध्रप्रदेश (अब तेलंगाना) में चले गए।
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1989 में महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें आंध्रप्रदेश को सौंपने का फैसला किया, लेकिन कानूनी आपत्तियों के बाद यह रोका गया।
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सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्यों को केंद्र सरकार से ही सीमा परिवर्तन करवाने की सलाह दी थी, जिसके बाद मामला वर्षों से लंबित है।
वर्तमान स्थिति: महाराष्ट्र सरकार की नई कोशिश
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जुलाई 2025 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राजस्व मंत्री ने अधिकारियों को इन गांवों को चंद्रपुर जिले में शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए।
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महाराष्ट्र सरकार का दावा है कि इन गांवों के राजस्व रिकॉर्ड उनके पास हैं और जनसंख्या पूरी तरह से मराठी भाषा बोलती है, जबकि प्रशासनिक नियंत्रण अब तक तेलंगाना के पास है।
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दोनों राज्यों के जनप्रतिनिधि, स्कूल, सड़क, पानी, बिजली आदि की सुविधाएं यहां दोगुनी हैं, परंतु सबसे प्रमुख मुद्दा है ‘जमीन के पट्टे’ का, जिसे लेकर ग्रामीण दशकों से जूझ रहे हैं।
स्थानीय निवासियों की राय और ऊहापोह
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कई ग्रामीणों ने तेलंगाना में ही रहने की इच्छा जताई, क्योंकि उन्हें वहां राज्य की कल्याणकारी योजनाओं का सीधा लाभ मिलता है — जैसे कि मुफ्त बिजली, पेंशन, महिला-सशक्तिकरण योजनाएं।
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कुछ परिवार मराठी संस्कृति, स्कूल व्यवस्था और चंद्रपुर से जुड़ाव के कारण महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं।
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ग्रामीणों की मुख्य मांग: “जिस राज्य से जमीन के पट्टे और संपत्ति का अधिकार जल्दी मिलेगा, हम वहीं रहना चाहेंगे।” उन्हें सबसे अधिक चिंता जमीन-पट्टे मिलने, रोज़गार, किसान सहायता और शिक्षा की है।
राजनीतिक व न्यायिक पहलू
पक्ष | दावे/कदम |
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महाराष्ट्र | ऐतिहासिक राजस्व रिकॉर्डो के आधार पर दावा |
तेलंगाना | प्रशासनिक नियंत्रण, पंचायत-सेवाएं |
सुप्रीम कोर्ट | केंद्र सरकार द्वारा समाधान की सलाह |
ग्रामीण | ‘जिससे हक मिले, हम उसी के साथ’ की भावना |
प्रमुख चुनौतियां
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राहत योजनाओं का दोहरापन: दोनों राज्यों की अलग-अलग योजनाएँ — परंतु सुविधाओं का अनिश्चित वितरण।
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प्रशासनिक उलझन: दो-दो पंचायत, स्कूल, चुनाव आयोग के दस्तावेज।
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संवैधानिक अधिकार: संविधान के आर्टिकल 3 के तहत केवल केंद्र सरकार ही राज्य सीमाओं में बदलाव कर सकती है।
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समाज-राजनीतिक तनाव: प्रत्येक चुनाव, योजनाओं और योजनाबद्ध विकास के समय दोनों राज्यों के नेताओं में बयानबाजी तेज हो जाती है।
राष्ट्रीय चर्चा में क्यों?
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यह मामला केवल सीमा विवाद नहीं, बल्कि ग्रामीणों की पहचान, कल्याण और संवैधानिक अधिकारों का भी है।
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सोशल मीडिया, समाचार पोर्टल्स और क्षेत्रीय चैनल्स में यह मुद्दा जोरों पर है।
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महाराष्ट्र और तेलंगाना दोनों की सरकारों पर अपने नागरिकों के समर्थन–कल्याण सुनिश्चित करने का दबाव है।
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निष्कर्ष
महाराष्ट्र-तेलंगाना सीमा के 14 गांवों की स्थिति प्रशासनिक, संवैधानिक और सामाजिक रूप से जटिल है। इन गांवों के नागरिकों की मुख्य कामना है – स्थिरता, हकदारी और भविष्य की सुरक्षा। अब देखना है कि केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद इन गांवों का भविष्य किस दिशा में जाता है।