ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत की रणनीति कैसे बदली? जानिए 2005 से 2025 तक भारत ने IAEA में कैसे वोट किया, और क्यों अब वह संयमित रुख अपना रहा है।
ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत की रणनीति कैसे बदली? जानिए 2005 से 2025 तक भारत ने IAEA में कैसे वोट किया, और क्यों अब वह संयमित रुख अपना रहा है।

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत का रुख: 2005 में विरोध, 2024-25 में संतुलन

📅 प्रकाशन तिथि: 23 जून 2025 | 🕐 समय: 10:30 AM
लेखक: The Rational Herald

ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर भारत की रणनीति कैसे बदली? जानिए 2005 से 2025 तक भारत ने IAEA में कैसे वोट किया, और क्यों अब वह संयमित रुख अपना रहा है।

क्या भारत ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर फिर से निर्णायक मोड़ पर है?
2005 में जहां भारत ने अमेरिका के दबाव में आकर ईरान के खिलाफ मतदान किया था, वहीं 2024 और 2025 में उसने संयमित रुख अपनाते हुए IAEA में वोटिंग से दूरी बना ली है।
यह भारत की कूटनीतिक संतुलन नीति का उत्कृष्ट उदाहरण है — एक ओर अमेरिका और इज़राइल जैसे रक्षा साझेदार, तो दूसरी ओर ईरान जैसा ऐतिहासिक मित्र।

2005: जब भारत ने ईरान के खिलाफ मतदान किया

  • 24 सितंबर 2005 को भारत ने IAEA में ईरान के विरुद्ध वोट दिया।

  • यह प्रस्ताव था: ईरान ने परमाणु संधियों का उल्लंघन किया है (GOV/2005/77)।

  • अमेरिका के साथ सिविल परमाणु समझौते की बातचीत उस समय शुरू हो चुकी थी, और वॉशिंगटन ने दिल्ली पर दबाव बनाया।

क्यों अहम था ये फैसला?
भारत ने NAM (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) के सदस्य होते हुए भी पश्चिमी देशों का साथ दिया, यह भारत की विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव था।

भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील का असर

  • भारत उस समय खुद को “जिम्मेदार परमाणु शक्ति” के रूप में प्रस्तुत करना चाहता था।

  • IAEA में अमेरिका के साथ खड़े होने से भारत की विश्वसनीयता बढ़ी।

  • फरवरी 2006 में, भारत ने फिर से IAEA में ईरान को UNSC में भेजने के पक्ष में वोट दिया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में कहा:

“ईरान को शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के अधिकार हैं, लेकिन ये IAEA की निगरानी में होना चाहिए।”

2007–2024: भारत का ‘No Vote’ फेज

  • 2006 के बाद से जब मामला UNSC चला गया, भारत ने कोई भी पक्ष नहीं लिया।

  • Barack Obama की सरकार ने 2015 में ईरान के साथ JCPOA डील की।

  • 2017 में ट्रंप प्रशासन डील से बाहर निकला, फिर से तनाव बढ़ा।

इस दौरान भारत को ईरान से तेल आयात रोकना पड़ा, लेकिन चाबहार पोर्ट पर काम जारी रहा।

2024: भारत ने दो बार Abstain किया

  1. जून 2024: अमेरिका द्वारा लाए गए प्रस्ताव में भारत ने वोटिंग से परहेज किया।

    • 19 देशों ने ईरान के खिलाफ वोट दिया, भारत 16 abstaining देशों में था।

  2. सितंबर 2024: फ्रांस, जर्मनी, UK और US द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर भी भारत ने फिर से Abstain किया।

📌 दोनों मामलों में भारत ने स्पष्ट किया कि वह ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु अधिकार का समर्थन करता है, लेकिन सुरक्षा मानकों का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं।

जून 2025: फिर से वही संतुलन

  • IAEA रिपोर्ट में कहा गया कि ईरान ने 1974 के Comprehensive Safeguards Agreement का उल्लंघन किया है।

  • भारत ने फिर abstain किया।

  • यह दर्शाता है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता और संतुलित नीति पर अडिग है।

भारत की विदेश नीति अब “रणनीतिक आत्मनिर्भरता” के सिद्धांत पर आधारित है। यह वह रास्ता है जहां कूटनीतिक संबंधों की दिशा केवल पारंपरिक मित्रता या विरोध पर नहीं, बल्कि वास्तविक हितों और दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर तय होती है।

भारत अब न तो पश्चिमी दबाव में निर्णय लेता है, और न ही पूर्वी आकर्षण के कारण अपनी प्राथमिकताओं को त्यागता है।

आज का भारत यह मानता है कि बहुपक्षीय संवाद, संप्रभुता की रक्षा, और क्षेत्रीय स्थिरता — ये तीनों समान रूप से ज़रूरी हैं।

ईरान के परमाणु कार्यक्रम जैसे मुद्दों पर भारत की सोच यह है कि:

  • सभी देशों को शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा का अधिकार है,

  • लेकिन यह अधिकार गंभीर वैश्विक जवाबदेही के साथ जुड़ा होना चाहिए।

भारत की कोशिश है कि वह संघर्षों का मध्यस्थ बनकर उभरे, न कि किसी एक पक्ष का अंधसमर्थक।

इसलिए भारत की नीति को अब विशेषज्ञ “Multi-Alignment without Entanglement” कहते हैं — मतलब सभी से रिश्ते, लेकिन किसी के एजेंडे में फंसना नहीं।

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